राहुल गांधी की MSP गारंटी छोटे किसानों के जीवन में खाद का काम करेगी

एमएसपी गारंटी सभी को लाभ देगी, ख़ासकर छोटे किसानों को

भारतीय कृषि संकट में है। प्रधानमंत्री मोदी के राज में 1 लाख से भी ज्यादा किसानों की मौत, आत्महत्या से हुई है और औसतन किसान के पास 60% से ज्यादा क़र्ज़ हैं, तब भी जबकि खेती की लागत बढ़ चुकी है - धान 54% से, गेहूं 42% से, चने 52% से

इस संकट से, छोटे किसान ही सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं। 14.3 करोड़ खेती परिवारों के पास एक हेक्टर (चार बीघा) से भी कम ज़मीन है. 70% किसान 10,000 प्रति माह से भी कम कम पाते हैं। जब बाज़ार की क़ीमतें ऊपर-नीचे होती हैं तब छोटे किसान अपनी फसलों को स्टोर करके रख नहीं पाते, उसे कहीं और लेकर जा नहीं पाते और ना ही इंतज़ार करने के लिए लोन ले पाते हैं।

इसलिए हम हर साल मायूस और निराश किसानों को मजबूरी में अपनी उपज, सड़क किनारे फेंकते देखते हैं क्योंकि वे अपनी फसलों की लागत का एक अंशमात्र भी नहीं निकाल पाते हैं और साथ ही हम किसानों की आत्महत्या की खबरें सुनते हैं क्योंकि वे अपने छोटे कर्ज भी नहीं चुका पाते हैं। एक स्थाई एवं मुनाफेदार कीमत किसानों की मदद करेगी खास तौर पर सबसे गरीब किसानों को।

एमएसपी गारंटी एक बेबाक, ठोस कदम है जो कि अन्नदाताओं की मदद करेगा - ख़ास तौर पर छोटे किसानों को और यह चल रहे इस संकट से कृषि को बाहर निकाल पाएगा।

एमएसपी गारंटी बड़ी आसानी से लागू की जा सकती है

सरकार जिस 10 लाख करोड़ की लागत का दावा कर रही है वह झूठ है - गारंटी के हिसाब से अनुमान यह है कि सरकार पहले हर फल, सब्ज़ी, अनाज और दाल ख़रीदेगी और फिर हमारी क़ानूनी एमएसपी गारंटी यह सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न तरीकों का उपयोग करेगी कि किसानों को एमएसपी प्राप्त हो, जो इस प्रकार हैं: 

    1. बाज़ार क़ीमतों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए आयात और निर्यात का उपयोग करना
    2. रणनीतिक ख़रीद, यानी सरकार बस पर्याप्त फसलें खरीदेगी - जैसे 15% - बाज़ार कीमतें बढ़ाने के लिए। कुछ भी बर्बाद नहीं होगा - फ़सलें ज़्यादातर दोबारा बेची जाएंगी। कुछ चीज़ें - चावल, गेहूं आदि की आपूर्ति पीडीएस के माध्यम से की जाएगी। 
    3. अपवाद मामलों में जहां किसानों को एमएसपी से नीचे बेचना पड़ता है, सरकार इस अंतर की पूर्ति करेगी।

हमारी योजना सुसंगत रूप से उन युक्तियों को एक साथ लाती है जिन्हें विभिन्न सरकारों द्वारा पहले ही आज़माया जा चुका है। सटीक कीमतों के आधार पर, विशेषज्ञों ने 50,000 करोड़ से 2 लाख करोड़ के बीच के परिव्यय (आउट-ले) का अनुमान लगाया है। यह आज के केंद्रीय बजट का सिर्फ 1-4% है। 

बिना किसी नतीजे के कॉर्पोरेट उपहारों को कृषि में आसानी से दोबारा निवेश किया जा सकता है

किसानों को राहत देने की सारी चर्चा में दो मुख्य बिंदु छूट जाते हैं - पहला, कि अर्थव्यवस्था में निवेश करना सरकार की ज़िम्मेदारी है, और दूसरा - कि सरकार पहले से ही लाखों करोड़ रुपये का निवेश कर रही है - सिवाय इसके कि यह सब कॉरपोरेट्स के पास जा रहा है।

कॉर्पोरेट कर की दर 1947 के बाद से सबसे कम 22% है, जिससे सरकार को हर साल 1 लाख करोड़ रु. चुकाने पड़ते हैं। रघुराम राजन जैसे विशेषज्ञों द्वारा उठाए गए संदेह के बावजूद, पीएलआई के नाम पर 2 लाख करोड़ रुपये बांटे गए हैं। इन 'निवेशों' का कोई नतीजा नहीं निकला - वित्त मंत्री खुद बार-बार कंपनियों से निवेश बढ़ाने की अपील करती हैं, जबकि बेरोज़गारी चरम पर है। 

निश्चित रूप से, यदि हम कॉरपोरेट्स को लाभ पहुंचाने के लिए लाखों करोड़ रुपये दे सकते हैं, तो हम आसानी से अपने अन्नदाता को पूरे देश का भरण-पोषण उपलब्ध कराने में उनकी कड़ी मेहनत के लिए उचित भुगतान प्राप्त करने में सहायता भी कर सकते हैं। इससे निश्चित रूप से ग्रामीण अर्थव्यवस्था का भी कायाकल्प होगा। 

भारत किसानों के साथ दे सकता है और हमेशा देगा

आज हमारे पास अपने किसान भाइयों और बहनों के साथ खड़े होने का ऐतिहासिक अवसर है, उसी परंपरा में जिसका पालन भारत ने आज़ादी के बाद से हमेशा किया है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी बार-बार एमएसपी का वादा किया था - गुजरात के सीएम के रूप में, पीएम के रूप में और किसानों के विरोध के दौरान। अब वे किसानों की ज़रूरतों को राजनीतिक और राजकोषीय असंभवता के रूप में खारिज कर देते हैं - इस से साफ़ पता चलता है कि उनमें ईमानदारी, क्षमता और सहानुभूति की कमी है।

इससे भी बुरी बात यह है कि वे कृषि का कॉर्पोरेटीकरण करने के पक्षधर हैं। कॉरपोरेटीकृत बाज़ार के नतीजे अमेरिका जैसे होंगे, जहां पिछले पचास वर्षों में 40 लाख छोटे खेतों को कॉरपोरेटों ने निगल लिया है। हम ऐसा भारत चाहते हैं जहां हर किसान और उनके बच्चे खेती के माध्यम से सम्मानजनक जीवन जीने के लिए पर्याप्त कमाई कर सकें, न कि ऐसा जहां उन्हें नौकरी की तलाश में शहरों की ओर पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़े।

बेशक यह एक चुनौती है - लेकिन कांग्रेस ने अतीत में उन चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना किया है जिन्हें दुनिया असंभव मानती थी। हम हरित क्रांति लेकर आए और आजादी के बाद भारत को भुखमरी के कगार से निकालकर चावल और गेहूं का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश बना दिया। हम श्वेत क्रांति और अमूल लाए और आज भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक है।

आज, एमएसपी क्रांति का समय है। कांग्रेस ने पहले भी ऐसा किया है, और हम इसे फिर से कर सकते हैं और कर के दिखाएंगे।

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