सब के हक़, हिस्सेदारी और हित का रास्ता - जातिगत गिनती

हमारे देश की स्थिति के बारे में सच जानने और गलतफहमियां को तोड़ने का काम जातिगत गिनती करेगी। साथ ही हर एक देशवासी के हक़, हिस्सेदारी और हित के बारे में एक नई चर्चा भी शुरू करेगी। एक ऐसे समय में जब समाज के बीच असमानता की खाई गहरी होती जा रही है, यह एक आवश्यक कदम है, ताकि इस देश के हर नागरिक, खासकर हाशिए पर रहने वाले लोगों को न्याय मिल सके जिसका वादा हमारा संविधान उनसे करता है। बिहार से शुरू हुई यह लहर अब कर्नाटक और तेलंगाना तक पहुंच चुकी है और कांग्रेस पार्टी इसे पूरे देश में फैलाएगी।

अगर आप सरकार की बात सुन रहे हैं तो हाल ही में आपंके कुछ चौंकाने वाले आंकड़ें सुने होंगे। जनवरी 2024 में सरकार ने दावा किया कि हमारे देश में सिर्फ 11% भारतीय ही गरीब हैं और मार्च में उन्होंने कहा कि केवल 5% भारतीय गरीब हैं! मतलब यह कि 2 महीने में 8 करोड़ भारतीय गरीबी रेखा से बाहर आ गए! इतना ही नहीं सरकार लगातार ये बात कह रही है कि देश में बेरोज़गारी जैसी कोई समस्या ही नहीं है।

लेकिन जब आप जनता से बात करेंगे तो एक नई ही कहानी सामने आएगी। आप खुद से ही ये सवाल करें- क्या 95% भारतीय संपन्न हैं? किसी भी युवा से पूछें - क्या युवा नौकरी को लेकर आश्वस्त महसूस करते हैं?

सच्चाई तो यह है कि आज भारत एक बहुत ही खतरनाक बीमारी से जूझ रहा है- सामाजिक और आर्थिक असमानता की बीमारी। हमारे देश में न केवल अमीरों और गरीबों के दो भारत हैं, बल्कि समाज के ज्यादातर वर्ग गरीब हैं और उन्हें अपने देश में हो रहे तथाकथित ‘विकास’ का कभी लाभ नहीं मिलता है।

हमारे देश की इस बीमारी की और भी कई तरीकों से दिखाई देती है। जब हम देखते हैं कि गरीब कौन हैं और अमीर कौन, तब इस बीमारी के लक्षण स्पष्ट दिख जाते हैं। दलित, आदिवासी, पिछड़े वर्ग में 85% दिहाड़ी मज़दूर हैं, लेकिन देश की शीर्ष कंपनियों के मालिक और बोर्ड सदस्यों में इनकी संख्या केवल 7% है। ये खाई सरकार, न्यायपालिका, शिक्षा, मीडिया सभी सेक्टरों में भी दिखाई देती है।

देश के अधिकांश गरीब दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग के हैं। वे ही सबसे ज्यादा मेहनत करते हैं, फिर भी उन्हें उचित हिस्सा और हक़ नहीं मिलता है। जो लोग काम करते हैं और जो दूसरों से काम कराते हैं उनकी कमाई में इतना बड़ा अंतर कैसे है? जातिगत और आर्थिक गिनती के बगैर ये सच्चाई सामने नहीं आएगी।

गिनती नहीं तो सच नहीं, परवाह नहीं

आज अगर हमें देश की सच्चाई को जानना है तो सबसे पहले कड़ी जांच-पड़ताल करनी होगी और उसके बाद रोग के इलाज के बारे में सोचना होगा। हमारे पास ऐसा ही एक टेस्ट है - जातिगत और आर्थिक गिनती।

जातिगत गिनती क्या है? इसमें हर घर के प्रत्येक व्यक्ति की गिनती की जाती है। सरकारी प्रतिनिधि हर घर पर जाते हैं, और लोगों से उनके और उनके परिवार के बारे में कुछ जरूरी सामाजिक और आर्थिक जानकारी लेते हैं। इसमें उनकी उम्र, शिक्षा स्तर, नौकरी और आय, उनके घर की स्थिति, उनके पास मौजूद संपत्ति और वो किस जाति से हैं जैसी चीजें शामिल हैं।

देश के हर घर में हर व्यक्ति को गिनने से उनकी सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति के साथ-साथ उनके समुदाय की स्थिति का सच भी साफ साफ सामने आ जाता है। आज, अधिकांश भारतीयों को अपनी वास्तविक स्थिति का पता ही नहीं है - क्योंकि सरकार ने पिछले 15 साल में देश-व्यापी जनगणना कराई ही नहीं है।

अगर आपको किसी भी प्रकार का शक है तो बिहार में हुई जाति जनगणना के नतीजों पर नजर डालें। बिहार में लगभग 34% परिवार प्रति माह 6,000 रुपये से कम पर गुजारा कर रहे थे। इतने पैसे में किसी भी परिवार की बुनियादी जरूरतों को पूरा करना नामुमकिन है। इनमें से 88% दलित, आदिवासी या अल्पसंख्यकों सहित पिछड़े वर्गों से थे।

जातिगत और आर्थिक गिनती से निकले हुए ऐसे जानकारी हर वर्ग की सामाजिक-आर्थिक वास्तविकता को सामने लाती है। यह कुछ खास आवश्यकताओं, चुनौतियों के साथ साथ धन और अवसरों की हिस्सेदारी पर भी स्थिति स्पष्ट करता है।

गिनती नहीं तो न्याय नहीं

जातिगत गितनी हमारे देश की सामाजिक असमानता के समस्या का समाधान करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। इसलिए राहुल गांधी जी ने 'गिनती' के मुद्दे को प्राथमिकता दी है। भारतवासियों से जुड़ने के लिए की गई न्याय यात्रा के दौरान किए गए जनसंवादों में उन्होंने यह बात साफ भी कर दी। उन्होंने साफ कहा कि जातिगत और आर्थिक गिनती के बिना अधिकार, प्रतिनिधित्व, और संसाधनों को हर नागरिक तक समान रूप से नहीं पहुंचाया जा सकता है।

प्रत्येक नागरिक और उनकी समस्याओं की गिनती करने के बाद हमें यह साफ पता चल सकता है कि बुनियादी आवश्यकताओं, अवसरों और धन तक किसकी कितनी पहुंच है। इन मानकों पर देश का हर व्यक्ति और समुदाय कहां खड़ा है। इससे हमें पता चलेगा कि एक देश के रूप में हम कहां खड़े हैं। एक बार जब हमें पता चल जाएगा कि देश कहां खड़ा है, तो हमें पता चल जाएगा कि सरकार की कौन सी नीतियां काम कर रही हैं और कौन सी नहीं। जाति जनगणना सरकार को लोगों के प्रति जवाबदेह बनाएगी।

जातिगत गिनती भविष्य की सरकारी नीतियों के बारे में भी सूचित करेगी। ये नीतियां गिनती के माध्यम से मिले आंकड़ों के कारण प्रभावी और न्यायसंगत होंगी क्योंकि गिनती द्वारा मिली जानकारी से इन नीतियों को लोगों को ध्यान में रखकर बनाया जाएगा। खासकर उन लोगों को जिनपर ये प्रभाव डालेंगी। फिर चाहे संसाधनों में आवंटन की बात हो, शिक्षा और रोजगार में आगे बढ़ने के अवसरों की बात हो, या फिर बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता की बात हो। पिछले दशक की असफलताओं का सही ढंग से समाधान भी इसी तरीके से किया जा सकता है।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि देश के सभी महत्वपूर्ण निर्णय में हर समुदाय की पूर्ण भागीदारी होनी चाहिए। यह गिनती देश के सभी नागरिकों को देश की प्रगति में भागीदार बनाएगी और देश के संसाधनों में उनकी हिस्सेदारी और उनके संवैधानिक अधिकारों को सुनिश्चित करेगी।

तभी अपने घरों और गांवों से लेकर दुनिया में कहीं भी हर भारतीय गर्व से अपना सिर ऊंचा रख सकता है और सीना तानकर खड़ा हो सकता है। तभी हम एक देश के रूप में अपने देशवासियों के उज्जवल भविष्य के लिए निष्पक्षता और समानता के रास्ते पर चल सकते हैं।